लेखनी प्रतियोगिता -04-Sep-2022 जिंदगी में एक दिन
शीर्षक= जिंदगी में एक दिन
जिंदगी हर हारे हुए इंसान को दूसरा मौका अवश्य देती है जिसमे वो अपनी जिंदगी सवार सकता है बस इंसान में इतना सब्र और हिम्मत होना चाहिए की वो एक बार हारने पर दोबारा उस चीज को हासिल करने में लग जाए और जब तक लगा रहे जब तक वो दिन ना आ जाए की वो चीज खुद चल कर उसके पास ना आ जाए।
लेकिन कभी कभी ऐसा होता है जो चीज हम अपनी जिंदगी में हासिल करना चाहते हो और उसके लिए जी तोड़ मेहनत भी करते है किंतु किन्ही कारणों वश हम उसे खो देते है और अपनी जिंदगी से निराश हो जाते है और सोचते है की दुनिया खत्म हो चुकी है अब हमारी जिंदगी में वो दिन नही आएगा जिसकी हमें तमन्ना थी लेकिन ये दुनिया बहुत बडी है और एक छोटी सी हार पर खत्म नही हो जाती।
मैं अभिमन्यु शुक्ला उसी में से एक इंसान हू जो अपनी जिंदगी मे एक ऐसा दिन लाना चाहता था जब सब उस पर गर्व करे, जिंदा रहूं तब भी और जब तिरंगे में लिपटा आऊं तब भी अपनी जिंदगी और अपने जिस्म में बह रहे लहू का एक एक कतरा अपने देश पर और देशवासियों की सुरक्षा खातिर उन पर न्यौछावर कर दू ।
मेरा सपना, मेरी आंखो में सजोया सपना जिसे मैं हरदम पूरा करना चाहता था और उस दिन का इंतजार करता था जब मैं फौज की वर्दी पहन कर शीशे के सामने खुद को देखू और खुद से वायदा करू की कभी भी इस वर्दी पर कोई आंच नही आने दूंगा अपना फर्ज ईमानदारी से निभाउंगा जब जब मेरे देश को मेरी जरूरत होगी तब तब ये अभिमन्यु अपनी जान पर खेल कर अपने देश की रक्षा करेगा बिना एक बार अपने बारे में सोचे बिना।
लेकिन कहते है ना कभी इंसान की किस्मत के आगे मेहनत छोटी रह जाती है, इंसान चाह कर भी अपनी किस्मत का लिखा नही मिटा सकता कभी कभी मेहनत के दम पर किस्मत बदली भी जा सकती है लेकिन कभी कभी चाह कर भी भाग्य को बदला नही जा सकता।
ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ हाईस्कूल में अच्छे नंबर से पास होने के बाद मेने ग्यारहवीं में दाखिला तो लिया किंतु मेरा मन आर्मी की तैयारी करने में ज्यादा लगा रहा ।
सुबह 5 बजे उठ कर दौड़ना फिर शाम को दौड़ लगा कर घर आना, बीड़ी सिगरेट गुटके से दूरी बनाए रखना की कही ये मेरी सफलता के बीच का रोड़ा ना बन जाए और मैं अपनी जिंदगी का वो दिन देखने से वांछित ना रह जाऊ जब फौजी बन कर मुझे अपने देश और देशवासियों की रक्षा करनी है।
धीरे धीरे समय बड़ने लगा था। मेरी तैयारी भी बड़ने लगी थी स्कूल की पढ़ाई भी बस चल रही थी क्यूंकि मेरा सपना तो आर्मी ज्वाइन करने का था इसलिए पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान नही देता था।
सब को यकीन था की मेरा सिलेक्शन अवश्य हो जाएगा ओर मुझे भी पूरा भरोसा था लेकिन भाग्य के खेल भाग्य ही जाने इंसान सोचता तो बहुत कुछ है अपनी जिंदगी के बारे में लेकिन होता तो वही है जो उसकी किस्मत में लिखा होता है अब कोन जानता था की 2020एक ऐसा साल भी हम लोगो की जिंदगियों में आएगा जब सब की जिंदगियां उथल पुथल हो कर रह जाएंगी, सारी दुनिया चार दिवारी में कैद हो कर रह जाएगी लोगो के अपने उनकी आंखो के सामने दम तोड देंगे और वो उनके सीने से लिपट कर यहां तक की उन्हें मुखाग्नि और कब्रों में उतारने से भी डरेंगे और उनसे ऐसा करने को मना किया जाएगा। लोगो ने ना जाने कोन कोन से अनुमान लगा लिए थे अपनी जिंदगियों को लेकर की वो ये करेंगे, यहां जाएंगे, शादी रचाएंगे लेकिन परिणाम आप सब जानते है।
खेर छोड़ते है उस बात को मुद्दे पर आते है इतनी मेहनत करने के बाद आखिर कार जब मेरी जिंदगी का वो दिन आ पहुंचा जब मुझे अपनी मेहनत को कामयाबी में बदलना था और मैं बहुत उत्साहित था ऊर्जा से भरपूर था । लेकिन तब ही अचानक कुछ ऐसा हुआ मेरे घर से निकलने के बाद जिसने मुझे पूरी तरह हिला कर रख दिया। एक ट्रक से मेरा एक्सीडेंट हो गया बताया गया था की वो शराब पी कर ट्रक चला रहा था।
दो दिन बाद जब मेरी आंखे खुली मुझे होश आया तो मैने अपने आप को मशीनों से घिरा पाया और पास में अपने माता पिता को पाया जो देखने में तो उदास लग रहे थे किंतु उनके चेहरे पर आई उस झूठी मुस्कान को देख कर अंदाज़ा लगाया जा सकता था की वो कुछ छिपा रहे है।
होश आते ही मेरा पहला सवाल यही था कि मैं आखिर यहां क्या कर रहा हू, मेरा तो सिलेक्शन होना था आर्मी की दौड़ में फिर आखिर मैं यहां क्या कर रहा हू वो दिन तो मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण था मुझे जाना होगा, मुझे अपना सपना पूरा करना है ,
मेरे माता पिता जो मुझे ऐसा करने से रोक रहे थे और बोले बेटा अभी नही बाद में चले जाना पहले ठीक हो जाओ पूरी तरह ।
लेकिन मैं टेहरा थोड़ा जिद्दी किस्म का मैने उनकी एक ना सुनी और जैसे ही अपना पैर जमीन पर रखने के लिए अपने पैर पर जोर दिया तो ये क्या वहा तो कुछ हलचल ही नही हुई मैं घबराया और डरते हुए जैसे ही चादर हटाई मेरी चीख निकल गई।
वो दिन मेरी जिंदगी का सबसे भयावह दिन था जब मेरी एक टांग पूरी तरह जड़ से काट दी गई थी क्योंकि वो उस हादसे में बुरी तरह कुचल गई थी जिस वजह से उसे काटना ही सही लगा डॉक्टर्स को।
शायद यही वजह थी जो मेरे माता पिता उस दिन उस मुस्कान के पीछे छिपा रहे थे कुछ ही पलों में मेरे भाग्य का फैसला हो चुका था जो अपने देश और उसके लोगो की रक्षा करने की तैयारी कर रहा था आज वही दूसरों का मोहताज हो गया था अब जिंदगी भर वो बैसाखी के सहारे अपनी जिंदगी गुजारेगा उसकी जिंदगी दो लकड़ियों की मोहताज हो जाएगी। उस दिन मेरा सब कुछ एक ख्वाब की तरह आंख खुलने पर टूट सा गया था और मैं लाचार मजबूरों की तरह अस्पताल के उस बिस्तर पर पड़ा था जहां मेरे माता पिता मेरे पास थे।
कुछ दिन बाद मैं घर आ गया, मैं खुद को खत्म कर देना चाहता था कई बार कोशिश भी की किंतु नाकाम रहा क्योंकि मैं अब अपने माता पिता पर बोझ के सिवा कुछ ना था मेरा सपना टूट गया था, जो उम्मीदें मेरे माता पिता को मुझसे थी वो अब मैं पूरी नही कर सकता था एक जिंदा लाश बन कर रह गया था ये अभिमन्यु शुक्ला।
मैने खुद को एक अंधेरे कमरे में बंद कर लिया था क्योंकि अब मेरी जिंदगी में अंधेरा ही अंधेरा तो था अपनी जिंदगी की बाजी तो में हार चुका था।
लेकिन कहते है ना जिंदगी हर हारे हुए इंसान को एक मोका अवश्य देती है जिसमे वो खुद को साबित कर सकता है शायद मुझे भी जिंदगी दूसरा मौका देना चाहती थी । शायद उस दिन अगर मैं खुद को खत्म कर लेता और अपने पिता की कही बातों पर कान ना धरता तो आज ये अभिमन्यु शुक्ला अपनी जिंदगी के इस दिन को मना ना रहा होता
उस दिन जब मैने जहर की शीशी को अपने होठों से लगा कर खुद को खत्म करने की सोची तब ही मेरे पिता ने मेरे हाथ से वो शीशी छीन कर मेरे गाल पर एक तमाचा मारा और कहा " तुम्हे कोई हक नही भगवान की दी गई इस जिंदगी को अपने हाथो से खत्म करने का अगर हिम्मत है तो इसी तरह अपनी पहचान बनाओ और अपनी जिंदगी मे वो दिन लाओ जब हमे तुम पर गर्व हो ना की हम तुम्हारी चिता को मुखाग्नि देकर घर आकर तुम्हारे जाने का गम मनाते फिरे और दुनिया वालो से बाते सुने
जीवन में दुख और परेशानियां आती रहती है उनसे लड़ने की हिम्मत होनी चाहिए ना की जहर खा कर उन समस्यायों के सामने हथियार डाल देना चाहिए ।
तुम्हे क्या लगता है की तुम्हारी एक टांग चले जाने से तुम्हारे लिए दुनिया में कुछ बचा ही नही, तुम्हारी दुनिया खत्म हो गई, अगर आर्मी में ना जा सके तो क्या तुम अपने देश और उसके नागरिकों की रक्षा नही कर सकते ।
क्या पता ईश्वर ने तुम्हारे भाग्य में कुछ और बनना लिखा हो, क्या पता वो किसी और तरह अपने बंदों की रक्षा तुम्हारे हाथो करवाना चाहते हो तुम जानते हो डॉक्टर A P J अब्दुल कलाम साहब एयर फोर्स में जाना चाहते थे लेकिन किन्ही कारणों वश नही जा सके उन्हें भी अपने देश की रक्षा करनी थी अपितु उनका चयन ना हो सका तो क्या उन्होंने हिम्मत छोड़ दी नही बल्कि ईश्वर ने उनके भाग्य में कुछ और लिखा था तभी तो देखो आज हर हिंदुस्तानी और विदेशी उन्हें मिसाइल मैन के नाम से जानता है । इसलिए बेटा निराश ना हो अपनी जिंदगी से एक टांग ही तो नही है तुम्हारे पास बाकी सोचने के लिए दिमाग, चलाने के लिए हाथ चलने के लिए एक टांग भले ही अब तुम बैसाखी के सहारे चलोगे लेकिन तुम्हारी सोच, तुम्हारा हौसला तो वही पहले वाला है अपने लोगो की सुरक्षा उनकी हिफाजत करने का तो निकलो बाहर और देखो जिंदगी तुमसे क्या करवाना चाहती है यू इस तरह बंद कमरों में खुद को बंद करके कुछ हासिल नही होने वाला इस तरह तुम शरीर के साथ साथ दिमाग से भी अपंग हो जाओगे जो की बहुत खतरनाक होगा तुम्हारे लिए।
शायद उस दिन मेरे पिता की कही एक एक बात मेरे दिमाग में घर कर गई और उसके बाद पहले मैने अपनी पढ़ाई दोबारा शुरू की 12 वी के बाद मैं एक NGO से जुड़ गया जहां मुझे अपने जैसे बच्चो को पढ़ाने का मौका मिला उसके बाद लोग जुड़ते गए और कारवां बनता गया।
मैं और मेरी टीम लोगो की मदद करते रहे, और आगे बढ़ते रहे और आज मैं गर्व के साथ कह सकता हू की आज मेरी जिंदगी का ये सबसे महत्वपूर्ण दिन है जब मैं इस मंच पर खड़ा होकर अपने जीरो से आप सब का हीरो बनने तक की सफलता की कहानी सुना पा रहा हू आज मुझे अपने भाग्य पर और अपने आप पर गर्व है क्योंकि अगर में आर्मी ज्वाइन करता तो शायद मैं इतना लोगो की रक्षा नही कर पाता और कुछ समय बाद रिटायर होकर घर बैठ जाता लेकिन यहां हम और हमारी टीम हिंदुस्तान के कोने कोने में पहुंच कर अपनी जिंदगी की परेशानियों से जूझ रहे मुझ जैसे लोगो की, घरेलू समस्यायों से जूझ रही महिलाओं की समस्या, स्कूल जाने की चाह रखने वाले बच्चे जो गरीबी के कारण स्कूल नही जा पा रहे है उन सब की परेशानियों को हल करने का जिम्मा ये अभिमन्यु और उसकी टीम कर रही है काफी सालो से उम्मीद है आगे भी करते रहेंगे आप सब की दुआएं रही तो मंच पर खड़े अभिमन्यु ने कहा जो की अभिमन्यु को सम्मानित करने के लिए ही किया गया था क्योंकि उसने और उसके साथियों ने अपने NGO के चलते बहुत से लोगो को अंधेरे से निकाल कर उजाले की ओर ले आए थे।
अभिमन्यु पुरुस्कार लेकर तालियों की गड़गड़ाहट के साथ अपनी बेसाखियो का सहारा लेकर मंच से नीचे उतरा और अपने पिता को गले लगा कर रोने लगा।
प्रतियोगिता हेतु लिखी कहानी
shweta soni
05-Sep-2022 04:14 PM
Behtarin rachana
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Mohammed urooj khan
05-Sep-2022 01:36 PM
आप सब ही का तह दिल से शुक्रिया रचना पढ़ कर सराहने के लिए 🙏🙏🙏
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आँचल सोनी 'हिया'
05-Sep-2022 10:49 AM
Achha likha hai aapne 🌺
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